स्वभाव


जो जैसा है मैं उसके संग
वैसा ही बन जाने की कोशिश करता हूं
ईश्वर की बातें करता हूं आस्तिक लोगों के बीच
नास्तिकों के संग करता हूं चर्चा
ईश्वर के बिना सहारे के
मानव जीवन कैसे उन्नत हो सकता है।
भौतिकतावादी लोगों से
बातें करता जीवन समृद्ध बनाने की
अध्यात्मवादियों से आत्मा को
उन्नत करने के गुर सीखा करता हूं।
नई पीढ़ी को देता हूं यह मशविरा
पुरानी धूल झाड़कर नव पथ का निर्माण करें
जो बचे हुए हैं रत्न पुरानी पीढ़ी के
अनमोल विरासत उनसे हासिल करता हूं।
चाहे यह लगे विरोधाभासी कितना भी
कितनी भी हों विपरीत परस्पर राहें
सबके जरिये हम अपनी उन्नति कर सकते हैं
बस खुद के प्रति ईमानदार यदि रहें
जहर को भी अमृत में परिवर्तित कर सकते हैं।
इसलिये किसी के भी स्वभाव को
नहीं बदलने के चक्कर में पड़ता हूं
जो जैसा भी है वैसा ही वह सर्वश्रेष्ठ बन सके
इसी हरदम प्रयत्न में रहता हूं।
रचनाकाल : 1 जनवरी 2024

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