एनिमल
मैं सन्न रह गया फिल्म समीक्षा देख एनिमल की
कविताई करने वाले क्या सचमुच इतने ही निर्बल होते हैं?
होता न मुझे एतराज अगर पशुबल से ही हो पाता मानव का विकास
कोशिश पर करते रहे हजारों सालों से हम बनने की इंसान
छोड़कर उसको, फिर से पशुता अपनाना क्या श्रेयस्कर होगा?
बेशक वे हैं एनिमल, बनाते हैं जो पैसों खातिर ऐसी फिल्मों को
पर अगर उमड़ता इन्हें देखने युवा वर्ग, रह जाना पड़ता स्तब्ध
हजारों सालों से मानव बनने की कोशिश का क्या यही हमारा हासिल है?
अब नहीं रह गया इन तर्कों का अर्थ कि पशुबल दिखता है तत्काल, मगर
अच्छे कामों का असर दिखाई पड़ता है धीरे-धीरे
जब तहस-नहस कर डालेगा एनिमल समूची मानवता
तब असर दिखाई देगा भी तो किस पर आखिर कविता का?
हो जाय असंभव काबू पाना पशुबल पर, इसके पहले
कायम रखकर भी कोमलता, बनना ही होगा कविता को इतना ज्यादा मजबूत
एनिमल को भी वह मानव बनने पर कर डाले मजबूर
कि जैसे जान हथेली पर रखकर चलता वह, हिंसा की खातिर
कवि को रखनी होगी अपनी आहुति देने की तैयारी, अपनी कविताओं की खातिर।
रचनाकाल : 7-8 दिसंबर 2023
निस्संदेह बेहद चिंता का विषय।
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण जी
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