दु:ख-सुख


जब संकट आता था मुझ पर
मैं बेहद घबरा जाता था
लगता था कितनी जल्दी इससे मुक्ति मिले।
पर टल जाने पर संकट
सुख जब बहुत दिनों तक
पास रुका रह जाता था
धीरे-धीरे वह भी सुख सा
महसूस नहीं हो पाता था।
इसलिये नहीं अब संकट को
तत्काल विदा करने की कोशिश करता हूं
दु:ख-कष्टों को अपनी क्षमता भर सहता हूं।
जब से जाना दु:ख सहने से ही
सुख जैसा सुख लगता है
दु:ख भी मुझको सुख लगता है
सुख-दु:ख सहने में मिलता जो
आनंद अनिर्वचनीय
नहीं उसका विलोम कुछ दिखता है।
रचनाकाल : 14 दिसंबर 2023

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