अपने हिस्से का कर्तव्य


साफ नजर आती मुझको
उल्टी विकास की धारा
लेकिन कितनी भी कोशिश कर लूं
यह युगों पुरानी परम्परा
होती टस से मस नहीं
निराशा मन में छाती जाती है
बेचैनी बढ़ती जाती है
क्या धरे हाथ पर हाथ
देखता रहूं बैठ चुपचाप
पतन मानवता का!

आती है सहसा याद
कहानी रामायणकालीन
गिलहरी थी जो नन्हीं सी ही पर
सागर में बनते पुल पर
नन्हें-नन्हें पत्थर डाल
दिया था जिसने अपना योगदान
जब उससे पूछा गया
कि क्यों थकती है वह
करके नगण्य सा काम
कहा था उसने यह
इतिहास लिखा जायेगा जब
था कौन पक्ष में राम, कौन रावण के तब
गणना मेरी हो रामचंद्र की सेना में
इसलिये शक्तिभर मैं अपना
कर्तव्य निभाती जाती हूं।

सहसा छंटती है धुंध
निराशा मन की मिटती जाती है
कर्तव्य नजर जो आता अपने हिस्से का
जी-जान लगाकर उसको पूरा करता हूं
फल पर देता हूं ध्यान नहीं
पर अनायास परिवर्तन दिखने लगता है
जो धारा उल्टी दिखती थी
बेहद मामूली सही, मगर
उसका प्रवाह कुछ थमता है
विश्वास प्रबल यह होता है
उल्टे विकास की दिशा
सही होगी, तय है कि कभी न कभी
गंगा को भले भगीरथ लाये धरती पर
उनके पुरखों का योगदान क्या कुछ कम था!
रचनाकाल : 27-29 अक्टूबर 2023

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