यूटोपिया

क्या-क्या न संजोये थे दिल में अरमान
बदलने को दुनिया सपने कितने ही देखे थे
कुछ भी था नहीं असम्भव
बस मिल जाय जरा सा समय
निपट लूं वर्तमान की चिंता से
फिर सपनों की दुनिया रचने को बैठूंगा
होगा सबकुछ आदर्श
कहीं अन्याय नहीं रह जायेगा
सब बिना दण्ड के भय के, खुशी-खुशी से
सच्चाई के पथ पर बढ़ने की
स्वेच्छा से होड़ लगायेंगे
सतयुग जैैसा फिर से आयेगा समय
सुखी सब रामराज्य जैसे होंगे!

सपनों में ही लेकिन सपने रह गये
नहीं हो पाई चिंता वर्तमान की खत्म
शक्तियां ही कम होती गईं
कभी था जो बलिष्ठ, तन जर्जर होता गया
पतन की ओर निरंतर दुनिया बढ़ती रही
आज जब लटक रहे हैं पांव कब्र में
सोच रहा हूं कहां रह गई गलती
क्यों साकार न कर पाया सपने
क्या मृग मरीचिका जैसा
अपने सपनों में ही जीना
हम सब इंसानों की
नियति अंतत: होती है?
रचनाकाल : 18-19 अक्टूबर 2023

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