साफ-सफाई
मैं जब भी सुस्ताने की कोशिश करता हूं
मन बेलगाम होकर मनमानी करने लगता है
इसलिये मुझे रहना पड़ता हरदम अलर्ट
जब भी दिखता है कहीं जरा सा भी कचरा
तत्काल सफाई करते रहना पड़ता है
मैं जला दूध से कभी, इसलिये
छाछ भी सदा फूंक-फूंक कर पीता हूं।
अब भी मन से वे मिटी नहीं हैं स्मृतियां
जब आलसी हुआ करता था मैं
करता तब साफ-सफाई जब
हो जाता कचरा खूब जमा
उग आते थे जो व्यर्थ पेड़-पौधे उनको
जड़ से उखाड़ कर बगिया निर्मल करता था।
हो गई देर पर एक बार कुछ ज्यादा ही
इतना ज्यादा हो गया इकट्ठा कचरा
उसको करते-करते साफ पसीना छूटा
फिर भी दाग रह गया उसका हरदम की खातिर
कुछ पेड़ विषैले हो गये इतने बड़े
डर गया मन ही मन, अब नहीं उखड़ वे पायेंगे
पर किसी तरह प्राणों की बाजी लगा
उखाड़ा उनको तो गड्ढा जो उससे बना
नहीं आज तक पूरा वह भर पाया है।
इसलिये जरा सा भी कचरा या घास-फूस
अब सहन नहीं कर पाता हूं
करता हूं मन को साफ, दिनोंदिन निर्मल होता जाता हूं।
रचनाकाल : 20 जुलाई 2023
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