भविष्य की यात्रा


छाई यह कैसी धुंध, घुटन सी होती क्यों
क्यों लगा हुआ है मास्क सभी के चेहरे पर?
बच्चे उदास यह मरियल जैसे किसके हैं
हरियाली गायब हुई कहां सब वृक्ष गये!
हे ईश्वर! मैं यह किस ग्रह पर आ गया
यहां तो सभी अपरिचित और भयावह दिखता है?
जिंदादिल कोई नहीं, सभी के चेहरे मुरझाये से हैं
मैं जहां आ गया कहीं मौत का है यह तो साम्राज्य नहीं!
वह हरी-भरी प्यारी सी धरती कहां गई
वे संगी-साथी कहां गये जिनके अंदर मानवता थी
 घुटती जाती है सांस, मौत दिखती करीब
हे ईश्वर, मुझको क्यों लाकर मेरे ग्रह से
इस जगह भयानक छोड़ दिया?
सहसा खुलती है नींद, चौंक कर उठता हूं
तर-ब-तर पसीने से, पाता हूं अब भी कांप रहा थर-थर
सपने में यह किस अनजाने ग्रह पर जाकर मैं आया था?
 रचनाकाल : 16 जुलाई 2023

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