सजा और सुधार
मैं देख बुराई औरों की
जब गुस्सा होने लगता हूं
आ जाता याद तुरंत कि खुद भी
कहां अभी तक निर्विकार बन पाया हूं!
गलतियां स्वयं की मुझे बनातीं सहनशील
बनता हूं न्यायाधीश नहीं
अपराधी के समकक्ष स्वयं को पाता हूं
जब अपनी कथा बताता हूं
मैं कैसे उबरा बुरी आदतों
बुरे कर्म, अपराधों से
तो अपराधी को दिशा दिखाई देती है
उम्मीदों पर मेरी वह खरा उतरने की
कर देता धरती-आसमान को एक
मुझे हर रत्नाकर में
वाल्मीकि का अक्स दिखाई देता है।
रचनाकाल : 28 जुलाई 2023
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