अच्छे लोग
हर चीज मुझे पहले दुखदायक लगती थी
गर्मी में हो जाता था लू से त्रस्त
ठण्ड में शीतलहर से थर-थर कांपा करता था
बारिश में कीचड़ से मन किचकिच हो जाता
डर सांप-बिच्छुओं का भी हरदम लगता था
घर में पत्नी से झगड़ा हर दिन बात-बात पर होता था
आफिस में लगता था कि कंपनी मुझसे करती भेदभाव
जितने का हूं हकदार हमेशा उससे कम ही देती है
मन में थी इतनी भरी नकारात्मकता
कोई अच्छा भी करता था, तो शक करता था
होगा जरूर कुछ निहित स्वार्थ उसका इस मकसद के पीछे!
जब भी मिलता था कहीं चार लोगों से
हरदम निंदा रस की बातें करता-सुनता था।
फिर मिले मुझे कुछ लोग, सकारात्मकता से थे भरे
बुराई जितनी उनकी करता था, अच्छाई वे उससे भी बढ़कर करते थे
वस्तुत: बुरा जितना था मैं, अच्छाई में वे उससे बढ़कर अच्छे थे।
आखिर में उनसे हार गया, मैं रत्नाकर से वाल्मीकि बन गया
सभी अब लगता मुझे सकारात्मक, दिखता कुछ कहीं बुरा भी तो
अच्छाई अपनी और बढ़ा, मैं उसे दूर करने की कोशिश करता हूं
जो लोग मिले थे अच्छे, उनका मुझ पर है जो कर्ज
इस तरह उसे उतारा करता हूं।
रचनाकाल : 19 जुलाई 2023
Comments
Post a Comment