सच्चाई का बल


मेहनत से जब मैं डरता था
थोड़ा सा भी फल बहुत दिखाई पड़ता था
जब  पास हुआ था फर्स्ट, साठ प्रतिशत लाया
ऐसा तब लगा कि फतह कर लिया एवरेस्ट
बच्चे जब लेकिन मेहनत से, नब्बे के ऊपर लाये
तब आंख खुली, यह सोच लगा गहरा झटका
मेहनत से बचकर, रखकर छोटा लक्ष्य
महाअपराध जिंदगी में मैंने यह कर डाला!
खुश था मैं छोटे शिखरों पर ही चढ़ क्यों जब
सचमुच चढ़ पाना एवरेस्ट पर हर्गिज नहीं असंभव था?
तब से मेहनत करता अब मैं घनघोर
तरसता था जिस फल को, ढेर लगा है उसका अब
पहले थोड़े से कामों को भी बढ़ा-चढ़ाकर मुझे बताना पड़ता था
अब पूरा उन्हें बताने में ही सच, सकुचाना पड़ता है
समझें न लोग यह ताकि कर रहा अतिशयोक्ति!
कल्पना नहीं भर पाती थी जितनी उड़ान कुछ लिखने में
सच शुरू किया जब से लिखना
कल्पना से कई गुना मुझे तो अब वह अद्‌भुत लगता है
मेहनत लगती थी जितनी झूठ बोलने में
अब राज खुला यह सच कहना तो
सहज बहुत ही लगता है!
रचनाकाल : 13 जुलाई 2023

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