आत्म-संघर्ष
मैं अक्सर ही करता हूं यह महसूस
कि मेरे अलग-अलग दो चेहरे हैैं
बाहर से जैसा दिखता हूं
भीतर से बिल्कुल नहीं उसी के जैसा हूं
यह दोहरापन अपराधबोध से भी मुझको भर देता है
पर कोशिश करके भी मैं भीतर-बाहर से
समरूप नहीं बन पाता हूं।
खुद को ठहराने खातिर सच्चा कभी-कभी
देता हूं यह भी तर्क
पेड़-पौधे दिखते हैं जैसे
उनकी जड़ भी तो होती है उससे भिन्न
कि भीतर-बाहर का अलगाव
प्रकृति के ही स्वभाव में शामिल है!
संतुष्ट नहीं पर हो पाता अपने तर्कों से खुद ही
भीतर-बाहर से हो सकूं पारदर्शी
कमियां सब साफ नजर आयें मेरी
आसानी से कर सकूं ताकि निर्मूल उन्हें
दिन-रात इसी बस कोशिश में ही रहता हूं
बाहर से जैसा दिखता हूं
अंदर से भी वैसा ही बनने की खातिर
संघर्ष स्वयं से करता हूं।
रचनाकाल : 25-26 नवंबर 2022
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