असफलता की चाह

पहले डर लगता था मुझको असफलता से
अब बिना हुए असफल मिल जाय
सफलता तो डर लगता है।
दरअसल हुआ महसूस मुझे कई बार
बिना असफलता के जब हुआ सफल
तो बिना नींव के घर जैसा
गिर जाने का डर लगता था
जितना होता असफल उतनी
होती जातीं मजबूत जड़ें
आकाश चूमने से भय लगता नहीं
भरभरा कर न कहीं गिर जाऊं अति ऊंचाई से।
इसलिये लक्ष्य जितना ज्यादा होता ऊंचा
कोशिश करता हूं उतना असफल होने की
निश्चिंत भाव से फिर बिल्डिंग बनाता हूं
सह सकती है जो भूकम्पों के झटके भी।
रचनाकाल : 25 अगस्त 2022

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक