आजादी और अनुशासन

पुरखों ने दी थी आजादी
मैंने होकर स्वच्छंद
निरंकुशता में उसे बदल डाला
होकर अनुशासनहीन
तोड़ कर नियम-कायदे सारे
मुझको लगा कि मैंने
हासिल कर ली स्वतंत्रता!
शर्मिंदा हूं अपने ऊपर
सम्मान नहीं कर पाया अपने
पुरखों के बलिदानों का
बाहर से हूं आजाद मगर
भीतर से होना बाकी है
जिसके अभाव में आजादी
बन जाती आवारागर्दी
अपने भीतर अब तक वैसा
अनुशासन लाना बाकी है
रचनाकाल : 15 अगस्त 2022

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