कविता बनता जीवन
दिनचर्या जब व्यस्त हुई तब अक्सर ऐसा होता था
कविता लिखने की खातिर मुझको समय नहीं मिल पाता था
मन रहता था दिनभर अशांत, चिड़चिड़-चिड़चिड़ सा करता था
सुर-ताल बिगड़ जाते थे मैं बेसुरा स्वयं को लगता था।
सहसा ही फिर यह लगा कि जो भी करता हंू
उन सारे कामों को कविता जैसा ही क्यों न बना डालूं
जो भी हिस्से में काम आये, बेमन से करने के बजाय
सम्पूर्ण प्राणपण से होकर तल्लीन क्यों न वह पूर्ण करूं!
अद्भुत इसका यह हुआ असर, जो भी अब करता हूं
लयबद्ध सभी कुछ लगता है
सच कहूं अगर तो व्यस्त रहा निर्माण कार्य में
जिसके कई महीनों से, अपना वह घर
मुझको अब सुंदर कविता जैसा लगता है।
रचनाकाल : 17 अगस्त 2022
Comments
Post a Comment