दाता

डरता हूं मैं
बिना किये घनघोर परिश्रम
अच्छी कविता लिखने से
मैं नहीं खेलता जुआ
लॉटरी लगना मुझको
दहशत से भर देता है
किस्मत से कोई चीज अगर मिलती है
मुझको कर्ज सरीखी लगती है
ईश्वर का भी रह जाये कर्ज बकाया तो
वह बोझ की तरह मन के ऊपर रहता है।
इसलिये हमेशा कोशिश करता देने की
दाता बनने का सुख ही अनुपम होता है
देवता हमेशा देते, ऐसा कहते हैैं
मानवता को मिल सके देवता का दर्जा
यह सपना मुझको बहुत मनोरम लगता है
पत्थर के बदले फल देते जो पेड़
मुझे वे ईश्वर जैसे लगते हैैं
ऐसा ही ईश्वर बन पाने का
मेरा भी मन करता है।
रचनाकाल 11 दिसंबर 2021

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