वृक्ष का संघर्ष
लोगों ने मुझको पहले ही समझाया था
मैं ही था धुन का पक्का या फिर पागल था
जो बरबस ही चल पड़ा उगाने जंगल
रेगिस्तान बीच घनघोर!
समझाते थे सब लोग मुझे
मत रखो पेड़ घर के भीतर
जड़ इसकी जाती गहरे तक
दर्रे पड़ जायेंगे इससे दीवारों में
कमजोर इमारत हो जायेगी
सिर्फ तुम्हारी नहीं बल्कि
यह आसपास जो जंगल कांक्रीट का है
ढह सकता है।
जंगल तो मैंने उगा लिया था बंजर में
बेरहम नहीं थी प्रकृति, साथ मेरा उसने भरपूर दिया
पर एक पेड़ को अपने घर के बीच बचाना
होता ही जाता है बेहद कठिन
थपेड़ों से मैं गर्म हवाओं के भी
नहीं झुलस पाया था इतना ज्यादा बीच मरुस्थल में
पर कांक्रीट के जंगल में
होता ही जाता है मुझको दुश्वार बचाना एक पेड़
मैं नहीं अकेला पड़ा कभी इतना ज्यादा जंगल में भी
जितना ज्यादा महसूस कर रहा एक पेड़ यह बस्ती में
सहसा मुझको लग रहा कि जो संघर्ष कर रहे पेड़
बचाने को अपना अस्तित्व, भयानक कांक्रीट के जंगल से
खतरा उनको बंजर से ज्यादा है या हम इंसानों से?
रचनाकाल 5 दिसंबर 2021
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