प्रलोभन


वैसे तो मैं आमतौर पर रहता हूं ईमानदार 
थोड़ा सा बनकर बेईमान लेकिन हो भारी लाभ कहीं
मन डगमग होने लगता है
समझाने लगता हूं खुद को
थोड़ा सा बनकर बुरा
अगर हो बेशुमार फायदा
चढ़ावा ईश्वर को भी दे दूंगा
परमार्थ कार्य कुछ कर लूंगा
आसानी से यह धुल जायेगा
करने वाला हूं जो पाप जरा सा।
जाने किन जन्मों के लेकिन पुण्यों से
संकट के क्षण से जब पार उतर आता हूं सही-सलामत
डिगने से बच जाता है मन
होता है तब यह अहसास
दीखता था जो पाप जरा सा
उसके पीछे कितना दांव बड़ा था लगा हुआ।
पहली बार जरा सा होने पर भी बेईमान
आसान राह हो जाती है सम्पूर्ण भ्रष्ट हो जाने की
दिखने में छोटा भले कदम हो पहला
मंजिल की पर उससे दिशा नियत हो जाती है।
ईश्वर की मुझको नहीं जरूरत पड़ती आम दिनों में
लेकिन ऐसे बड़े प्रलोभन जो दिखने में छोटे लगते हैैं
उनके आगे मैं डिग न सकूं इसकी खातिर
करता हूं यह प्रार्थना कि ऐसे मौकों पर
 हे ईश्वर मुझे बचा लेना।
रचनाकाल 27 नवंबर 2021

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक