मिटे अंधेरा भीतर-बाहर का
ज्योतिपुंज हम महाकाय हों भले नहीं
पर छोटे-छोटे दीपक हैं
जितना भी सम्भव होता है
अपने हिस्से का दूर अंधेरा करते हैैं।
बेशक सूरज का होता है अपना महत्व
पर नहीं शिकायत हमको दीपक बनने से
जब तक बाकी हो एक बूंद भी ऊर्जा की
पूरी क्षमता के साथ उजाला दे पायें
जो मिली भूमिका हमको, उसे निभा पायें
बस यही कामना करते हैैं।
सच तो यह है देतीं जीवन
सूरज की किरणें प्रखर, मगर
होती न चांदनी मद्धम तो
सपनों का जन्म न हो पाता
होती न विविधता जग में तो
जीवन फीका ही रह जाता।
हम खुश हैैं सतरंगी समाज में रहते हैैं
हे ईश्वर, इसको लगे न कोई बुरी नजर
दीवाली की इस रात, जगमगाते दीपों के साथ
दूर हो जाय अंधेरा सारा भीतर-बाहर का
बस यही कामना करते हैैं।
रचनाकाल : 3 नवंबर 2021
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