दर्द


खुश हूं मैं दर्द मुझे बेहद मिला
बिना इसके कविता मैं
लिख ही नहीं पाता हूं
साथ रहती पीड़ा तो
डर भी नहीं लगता भटक जाने का
सारी कमियों की यह
कर देती भरपाई।
लज्जा पर होती है बेहद तब
सह नहीं पाता जब कभी-कभी
आह या कराह निकल जाती है
समझते हैं लोग मुझको बेचारा
राहें अनगिनती सुझाते हैं
पाने की खातिर मुक्ति दर्द से।
इसीलिये करता हूं
ईश्वर से प्रार्थना
दर्द जैसे दिया मनोवांछित
सहने की शक्ति भी मत छीनना
गरिमा के साथ उसको सह सकूं
बनने न पाऊं कभी
दुनिया की नजरों में बेचारा
सबकुछ सह सकता हूं
असहनीय लगता पर
दर्द का अपमान मुझे।
रचनाकाल : 27 अक्टूबर 2021

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक