जिंदादिली
ऐसा नहीं कि समय भयावह
मुझको नहीं डराता है
ऊपर से लेकिन हरदम रहता शांत
दिलासा देता सबको
‘बात नहीं चिंता की कोई
जल्दी ही सब हो जायेगा ठीक’
असर अद्भुत होता है इसका
चिंता रुक जाती है बढ़ना
मुख पर देख मेरे मुस्कान
सभी होने लगते आश्वस्त
मगर इससे भी ज्यादा अद्भुत है यह
देख-देख कर लोगों की आश्वस्ति
मुझे भी मिलता बहुत सुकून
दूर होने लगती है चिंता
मन के भीतर छिपा रखी थी जो।
इसलिये भयावह बातों, दुश्चिंताओं को
मैं भरसक कोशिश करता रोकूं
नहीं फैलने पायें वे जनमानस में
अच्छी हो लेकिन छोटी-सी भी खबर अगर
मैं पीट-पीट कर डंका उसका, फैलाता सब जगह
सकारात्मकता आये ताकि सभी के भीतर
भर जायें उमंग और ऊर्जा से जीवनदायी।
प्रेरणा मुझे देते सदैव शिवशंकर
सारा जहर स्वयं के भीतर सीमित रखते जो
बनते हैैं माध्यम गंगा को जो धरती पर ले आने का
मैं भी ऐसा संयंत्र चाहता हूं बनना
जिसके भीतर से गुजर नकारात्मकता सब हो जाय खत्म
थोड़ी सी भी हो मगर सकारात्मकता तो
वह कई गुना होकर मेरे भीतर से बाहर निकले
जिंदादिली सभी के जीवन में भर जाय।
मुझको नहीं डराता है
ऊपर से लेकिन हरदम रहता शांत
दिलासा देता सबको
‘बात नहीं चिंता की कोई
जल्दी ही सब हो जायेगा ठीक’
असर अद्भुत होता है इसका
चिंता रुक जाती है बढ़ना
मुख पर देख मेरे मुस्कान
सभी होने लगते आश्वस्त
मगर इससे भी ज्यादा अद्भुत है यह
देख-देख कर लोगों की आश्वस्ति
मुझे भी मिलता बहुत सुकून
दूर होने लगती है चिंता
मन के भीतर छिपा रखी थी जो।
इसलिये भयावह बातों, दुश्चिंताओं को
मैं भरसक कोशिश करता रोकूं
नहीं फैलने पायें वे जनमानस में
अच्छी हो लेकिन छोटी-सी भी खबर अगर
मैं पीट-पीट कर डंका उसका, फैलाता सब जगह
सकारात्मकता आये ताकि सभी के भीतर
भर जायें उमंग और ऊर्जा से जीवनदायी।
प्रेरणा मुझे देते सदैव शिवशंकर
सारा जहर स्वयं के भीतर सीमित रखते जो
बनते हैैं माध्यम गंगा को जो धरती पर ले आने का
मैं भी ऐसा संयंत्र चाहता हूं बनना
जिसके भीतर से गुजर नकारात्मकता सब हो जाय खत्म
थोड़ी सी भी हो मगर सकारात्मकता तो
वह कई गुना होकर मेरे भीतर से बाहर निकले
जिंदादिली सभी के जीवन में भर जाय।
रचनाकाल : 11 अक्तूबर 2021
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