रावण


हर साल जलाता हूं बुराइयों के पुतले रावण को मैं
हर साल मगर इसका कद पहले से भी बढ़ता जाता है
अद्भुत है, मुझको होता तनिक न पछतावा
खुश होता हूं हर बार, जलाऊंगा पहले से ज्यादा ऊंचे रावण को।
फुरसत ही पाता नहीं, राम सा बनने की
रावण के पुतले से लड़ने के चक्कर में
दिन-रात मुझे बस ध्यान उसी का रहता है
होता जाता हूं आदर्शों से दूर राम के रोज-रोज
रावण की संस्कृति को अपनाता जाता हूं
होकर भी रावण के खिलाफ, रावण जैसा ही बनता जाता हूं!
रचनाकाल : 15 अक्तूबर 2021

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