आजादी और गुलामी
पराधीन था जब तक मैं
सपने देखा करता था आजादी के
थी नहीं मुझे मंजूर गुलामी की बेड़ी
संघर्ष किया घनघोर मुक्ति पाने खातिर।
मिलते ही लेकिन स्वतंत्रता
त्रासदी हुई यह बड़ी
हो गया आवारा स्वच्छंद
अराजकता ने सबकुछ तहस-नहस ही कर डाला
मैं समझ ही नहीं पाया बहुत दिनों तक
आजादी का असली मतलब
दुर्गति देख, यहां तक लगने लगा
कि इससे तो वह पराधीनता अच्छी थी!
अब फिर से मैं कर रहा घोर संघर्ष
लड़ाई लेकिन यह खुद से ही है
तोड़ी थी पहले पराधीनता की बेड़ी
अब कठिन चुनौती खुद को अनुशासन में रख पाने की है
दिखते हों भले दूर से दोनों एक-दूसरे जैसे पर
बाहर से थोपा जाय जिसे, वह पराधीनता होती हैै
अंदर से उसको अपनाने पर अनुशासन कहलाता है
मैं अब भी पहले जैसा ही पाबंद चाहता हूं बनना
हैै फर्क मगर बस इतना, वह पाबंदी मेरी खुद की हो
खुद को अंकुश में रखकर ही
सच्चे अर्थों में मैं स्वतंत्र बन सकता हूं
रचनाकाल : 6 अक्टूबर 2021
Comments
Post a Comment