दांव


मैं नहीं खेलता जुआ, मगर
कई बार दांव पर जान लगा देता हूं अपनी
अच्छे कामों की खातिर।
मैं नहीं चाहता मिल जाये धन मुझको छप्परफाड़
कमाई मेहनत की बस देती मुझे सुकून
पराया पैसा जहर सरीखा लगता है।
रोमांच मगर जो होता है सट्टे में करता मुझको वह आकर्षित
होता फिफ्टी-फिफ्टी चांस, नहीं तय रहता पहले से कुछ भी
कंगाल और होने की मालामाल बराबर रहती संभावना
बहुत बारीक वहां पर हो जाती है रेखा
जीवन और मृत्यु के बीच विभाजन करती जो।
बेशक मुझको भी लगता ईश्वर नहीं खेलता जुआ
कहा करते थे जैसा अल्बर्ट आइंस्टीन
भले ही दिखें न हमको कारण कुछ घटनाओं के
पर होता नहीं अकारण कुछ भी दुनिया में
अपवाद कहीं हो तो वह भी नियमों के भीतर होता है।
सबकुछ लेकिन चल जाय पता यदि हमको पहले से ही तो
जीवन नीरस हो जायेगा, रोमांच बिना जीना मुश्किल हो जायेगा।
इसलिये राह जो दिखा गये हैैं पूर्वज अच्छे कामों की
चलता हूं उस पर, नहीं उठाने से जोखिम भी डरता हूं 
सर्वस्व दांव पर रखता हूं
बच गया अगर जिंदा तो होगी अच्छाई की जीत
मृत्यु ही मिली अगर तो होगी वह भी भव्य
यही बस सोच, हमेशा भिड़ता अच्छाई की खातिर नि:संकोच
जुआ-सट्टे से भी रोमांच मुझे मिलता है ज्यादा कई गुना।
रचनाकाल : 23-24 सितंबर 2021

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