सफलता-असफलता
कभी-कभी रह जातीं मेरी कविताएं अनलिखी
निरर्थक लगने लगती घण्टों की मेहनत
जबरन कुछ लिखता हूं तो बेमतलब सा लगता है
होता है कई बार मगर ऐसा भी
कुछ ही मिनटों में सुंदर कविता बन जाती है
मैं तर्क ढूंढ़ता हूं इसके पीछे का
जिससे सदा सफलता हासिल हो
असफलता से दो-चार न होना पड़े कभी।
मिल पाया मुझको मगर नहीं कोई ऐसा पैटर्न
सफलता-असफलता को अलग-अलग कर सकूं
जुड़े हैं दोनों ऐसे एक-दूसरे से जैसे सिक्के के हों दो पहलू
दिन के साथ जुड़ी हो रात, जुड़ा हो सुख से जैसे दु:ख भी।
तब अकस्मात मुझको यह आया ध्यान
कि मेरा दृष्टिकोण ही अब तक था एकांगी
असफलताओं रूपी जड़ के बिना सफलता का मैं
वृक्ष उगाकर फल पाने की इच्छा रखता था
दोनों को करने के बजाय स्वीकार
हवा में महल बनाने की कोशिश करता था
इसके कारण जितना सुख पाने की
कोशिश करता था, उतना दु:ख मिलता था
सफलता पाने के चक्कर में ही असफलता से डर लगता था।
तब से रहता हूं मगन परिश्रम करने में
फल जो भी मिलता खट्टा-मीठा, सबकुछ अच्छा लगता है
सुंदर कविताओं जितना ही
कविता के भीतर रिक्त स्थान भी सुंदर लगता है
उसी से अर्थवान बनती हैैं मेरी कविताएं।
रचनाकाल : 17 सितंबर 2021
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