अपराध
दु:ख मुझे नहीं असफलता का
अफसोस सिर्फ है इतना
जितनी मेरे भीतर क्षमता थी
कर पाया उतना काम नहीं।
अपना कर्तव्य निभा पाता
कर सकता था जो, उतना सबकुछ कर पाता
तो असफलता भी गरिमामय हो सकती थी
अपराधी मैं महसूस नहीं करता खुद को
हक मेरा मुझको नहीं दिला पाने से तब
ईश्वर ही मेरा कर्जदार बन सकता था।
शर्मिंदा हूं अब, कर्जदार हूं ईश्वर का
जितनी क्षमता दी मुझको उसका
कर पाया उपयोग नहीं
विश्वास जताया मुझपर देकर सर्वश्रेष्ठ मानव का तन
उस पर मैं खरा उतर न सका
चाहता अगर दुनिया को भी डालता बदल
पर अपनी कमजोरियां तक नहीं बदल सका।
स्वामी बनकर इस काया का
धरती को स्वर्ग बना देता
बनकर लेकिन अपने दोषों का ही गुलाम
बर्बाद स्वयं ही मैंने अपना जीवन सारा कर डाला
अब व्याकुल हूं यह सोच
कि खुद को हीरा मैं अनमोल बना सकता था पर
कोयला बनाकर रख डाला
हे ईश्वर मैंने कैसा यह अपराध भयानक कर डाला!
रचनाकाल : 9 सितंबर 2021
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