खुद्दारी


अक्सर ऐसा होता है
मिट जाती हैैं जब चिंताएं
मन बंजर होने लगता है।
बेशक मुझको डर लगता है
दु:ख होते हैैं जब असहनीय
मैं टूट न जाऊं पीड़ा से
अवसाद कहीं बर्बाद न कर दे जीवन को
भय इसका लगने लगता है
पर चिंतामुक्त समय में भी
निष्फिक्र नहीं मैं हो पाता
मन बेलगाम हो जाने का
हरदम डर लगता रहता है।
इसलिये शक्ति भर चिंताएं
मैं सदा बनाये रखता हूं
स्वेच्छा से अपनी क्षमता भर दु:ख सहता हूं
है मुझको नहीं पसंद भाग्य का निर्णय मेरे
स्वयं अलावा मेरे कोई और करे
इसलिये नहीं मौका देता हूं हस्तक्षेप का ईश्वर को
अपने कर्मों का फल खुद ही तय करता हूं
दु:ख जितना दे सकता हो ईश्वर, उससे ज्यादा सहता हूं
सुख पर जितना हक बनता है, हरदम उससे कम लेता हूं
सिर नहीं झुकाने की नौबत आती है ईश्वर के आगे
वह दोस्त सरीखा लगता है, महसूस मुझे होता मेरी
इस खुद्दारी का वह भी आदर करता है।
रचनाकाल : 13 सितंबर 2021

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