चिंता और चिंतन
मन की चिंताएं देख बहुत मैं परेशान होता था पहले
जब तक दूर न हो जायें चिंताएं मुझको चैन नहीं मिल पाता था
होते ही चिंता दूर एक, तैयार दूसरी लेकिन मिलती थी
दुष्चक्र सदा ही जारी मन में रहता था चिंताओं का।
इससे भी ज्यादा बात भयानक पर थी यह
कुछ क्षण को भी जब होता चिंतामुक्त कभी, मन बेलगाम हो जाता था
लगता था तब इससे अच्छा तो था चिंतातुर रहना ही!
इसलिये नहीं होने देता हूं मन को मैं अब पूरा चिंतामुक्त कभी
निर्लिप्त जरा सा खुद को मन से रखता हूं
अपने अनुकूल तर्क गढ़ने की कोशिश करता वह हरदम
इसलिये हमेशा मापदण्ड कुछ निर्धारित कर रखता हूं
मन को देता निर्देश कि उन नियमों पर उतरे खरा सदा
मनमानी पर अपने मन की अब कड़ी नजर खुद रखता हूं।
अद्भुत है, चिंतित रहने का अब समय नहीं मिल पाता है
हो स्वयं परिष्कृत मन अब करता जाता है चिंताओं का भी परिष्कार
दुनिया से खुद को जोड़, दृष्टि व्यापक कर वह चिंतन में समय बिताता है।
रचनाकाल : 1 अगस्त 2021
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