कोशिश
था समय कभी जब सरपट दौड़ा करता था
ऊर्जा अथाह थी भीतर, थकता नहीं कभी
फूलों के जैसा हल्का खुद को लगता था
अब नहीं बची है शक्ति, देह पत्थर जैसी लगती भारी
आगे बढ़ पाना पग दो पग भी दूभर होता जाता है
लेकिन समेट कर मन की सारी शक्ति
इंच दर इंच घिसट कर आगे बढ़ता जाता हूं
है पता मुझे आयेगी जब यह घड़ी फैसला करने की
कितनी कोशिश की थी कब आगे बढ़ने की
यह इंच-इंच आगे बढ़ना
उन सरपट चाल भरे दिन से भी
साबित होगा मूल्यवान
जैसे निर्धन का दान चंद पैसों का भी
धनवानों के लाखों पर भारी पड़ता है।
इसलिये मानता नहीं हार
हो कठिन समय कितना भी
देता नहीं ध्यान, कितना कर पाया काम
सतत रखता निगाह बस इस पर
कोशिश में तो कमी नहीं थी मेरे कोई
मैंने कहीं निराशा में आकर
मानकर हार हथियार तो नहीं दिये डाल!
असफलताओं से तो घबराता मैं नहीं मगर
थक कर रुक जाने से मुझको डर लगता है।
रचनाकाल : 27 अगस्त 2021
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