निंदा रस
जब दूषित था मन मेरा, सारी दुनिया को
मैं अपने जैसा समझा करता था
मौकापरस्त था जब तक, सबसे चौकन्ना ही रहता था
अच्छे लोगों को भी मैं तब देता था यह उपदेश
अकेले क्या कर लोगे अच्छाई से दुनिया में
भेड़िये सभी हैं बाकी, यदि नाखून नहीं अपने पैने रक्खोगे तो
वे तुम्हें नोंच कर खायेंगे।
तब एक-दूसरे की निंदा मैं सबसे करता फिरता था
कहता था सबसे यही, छोड़ कर तुम्हें एक
बाकी सब तो नालायक ही हैं दुनिया में।
लेकिन जब से अहसास हुआ है यह कि सभी से बढ़कर तो
नालायक मैं ही हूं इस सारी दुनिया में
इतना ज्यादा शर्मिंदा हूं, सिर नहीं उठा पाता हूं
हरदम अपने मन की साफ-सफाई में ही समय बिताता हूं।
धीरे-धीरे लाती जाती है रंग अथक कोशिश मेरी
जैसे-जैसे मन निर्मल होता जाता है
अद्भुत लगती है दुनिया
सारे लोग किसी न किसी गुण में अब मुझको
बेमिसाल से लगते हैं
थकता हूं नहीं प्रशंसा से लोगों की
निंदा रस अब मुझको जहर सरीखा लगता है।
रचनाकाल : 5 अगस्त 2021
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