अमीर-गरीब
मैंने सपना सुंदर देखा है
कोशिश करता हूं उसे उतारूं कागज पर
अद्भुत जो मैंने देखा है।
उस सपने जैसी दुनिया को
रचने की कोशिश करता हूं जीवन में
सबकुछ बना सकूं जादुई उसी के जैसा ही
दिन-रात यही धुन मन में चलती रहती है
नुकसान-नफे का गणित परे रख
लुटने को तैयार हमेशा रहता हूं।
जितना ज्यादा पर लुटता हूं इस दुनिया में
उस दुनिया में इससे भी ज्यादा मुझको मिलता जाता है
बाहर से भले न हो पाऊं समृद्ध मगर
भीतर से मैं सबसे अमीर दुनिया में बनता जाता हूं
संगीत-गीत, कविताओं का अनमोल खजाना
मिलता जो मुझे अदृश्य शक्ति से उसको
सबके बीच लुटाता जाता हूं।
पीड़ा लेकिन मन में होती यह सोच
कि दुनियादारी में जो निपुण समझते हैैं खुद को
लगता है उनको ठगते हैैं औरों को, लेकिन स्वयं ठगे जाते हैैं
धन-दौलत से सुख पाने की मृग-मरीचिका के चक्कर में
सपनों की अद्भुत दुनिया में कितने गरीब वे होते जाते हैैं!
रचनाकाल : 11-17 अगस्त 2021
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