आस्तिक और नास्तिक


मैं नहीं अंधविश्वासी हूं
पुरखों का संचित ज्ञान मगर
मैं बिना विचारे त्याग नहीं पाता हूं
जीवंत मुझे लगते हैैं पौधे पेड़ सभी
उनके आगे सिर को झुकने से रोक नहीं पाता हूं
मुझको लगता है जड़-चेतन जो कुछ भी है, ईश्वरमय है
इसलिये सभी पूजा-पद्धतियां मुझको सच्ची लगती हैैं
ईश्वर को पर हथियार बना, शोषण करते जो लोगों का
जो बन जाते मध्यस्थ, पहुंचने देते लोगों को ईश्वर तक नहीं
मुझे वे सबसे ज्यादा खतरनाक और ईश्वरद्रोही लगते हैैं
अच्छे लगते हैैं मुझको वे, जो नहीं मानते ईश्वर को
अपने सारे कर्मों की जिम्मेदारी लेते हैैं खुद जो  
है मुझे गर्व ज्ञानी-विज्ञानी लोगों पर
होता है आविष्कार कहीं जब नया
मुझे वह खुशियों से भर देता है
ऋषियों के जैसे ही मुझको अपने वैज्ञानिक लगते हैैं।
यह मान मगर जो हो जाते हैं उच्छृंखल
ईश्वर का दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं
रूढ़िवादियों के जैसे ही खतरनाक मुझको वे लगते हैैं।
ईश्वर को कोई माने या ना माने पर
तोड़े अनुशासन, मुझे भयानक लगता है
दरअसल सृष्टि चलती सारी अनुशासित हो
धरती-सूरज या चांद सितारे
सब अपनी-अपनी कक्षा में चलते हैैं
अनुशासन ही मुझको तो ईश्वर लगता है।
आंख मूंद कर करता मैं विश्वास नहीं
इसलिये पुरातनपंथी मुझको नहीं मानते अपना
लेकिन नियमों से मैं बंधा हुआ हूं 
इसलिये आधुनिक तथाकथित जो प्रगतिशील हैैं
वे भी मुझको अपने कुनबे से बाहर ही रखते हैैं
जो सचमुच के ही आस्तिक या फिर नास्तिक हैैं
सच्चे ऐसे ही लोग मुझे तो अपने लगते हैैं।
रचनाकाल : 23-27 जून 2021

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