नींव का पत्थर


की हो पढ़ाई जिसने
साल भर घनघोर लेकिन
भूल जाये सब कुछ
परीक्षा में जो छात्र वह
कितना अभागा है!
करके घनघोर मेहनत खेतों में
लहलहाती फसल को अचानक ही
बाढ़ में गंवा दे किसान जो
कितना वह किस्मत का मारा है!
चाहता हूं मेरी भी
ऐसे ही अभागों और
किस्मत के मारों में गिनती हो
देखता है कोई नहीं नींव को
गगनचुम्बी भवनों की
चाहता हूं बनना मैं ऐसी ही नींव ताकि
चूम सकें आसमान आने वाली पीढ़ियां
मिला है विरासत में जो
मुझको खोखला समाज
भीतर से उसको मजबूत करना चाहता हूं
पास हुए नकल करके छात्र जो,
अंधाधुंध खाद-पानी डालकर
खेतों को बंजर बना चुके किसान जो
उनकी गलतियों का दण्ड भोग कर
मेहनत करके भी घनघोर लेकिन
होकर वंचित फल से
बंजर हो चुकी सारी चीजों में
उर्वरता फिर से लाना चाहता हूं
ताकि नई पीढ़ी को
विरासत में मिल सके समृद्ध भूमि
रचनाकाल : 13 जून 2021

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