बुढ़ापा


सुविधाएं तो हैैं सारी लेकिन
बंद जेल में जैसे हूं, दम घुटता जाता है
शक्ति नहीं है इतनी उठकर भाग सकूं
सब संगी-साथी छूट गये
ये अंत समय में कैसी मुझ पर विपदा आई है!
ये अंधकार सा कैसा मुझ पर छाता जाता है
क्या मौत खड़ी है बांह पसारे, अब मैं मरने वाला हूं?
गला दबाता जाता है जैसे कोई, रुकती जाती है सांस
अचानक ढीले पड़ते हाथ, तभी फुर्ती से भाग निकलता हूं
पैर टकराते हैैं पर तभी चीज से किसी और गिर पड़ता हूं
सहसा खुलती है नींद, स्वयं को पाता हूं बिस्तर पर अपने पड़ा हुआ।

सपना था बड़ा भयानक, राहत मिलती है यह देख
अभी मैं हुआ नहीं हूं बूढ़ा, संगी-साथी सब हैैं साथ मेरे
मैं बंद जेल में नहीं, स्वयं अपने घर हूं।
सहसा आते हैैं याद आज के वृद्ध
बिठा जो पाते सामंजस्य नहीं बच्चों से
जिंदगी जिनकी कटती वृद्धाश्रम या घुट-घुट कर अपने घर में
बिजली सी जाती जैसे मन में कौंध
अनावृत होती है यह सच्चाई
सपना जो देखा मैंने, है कल्पना नहीं वह
तल्ख हकीकत है समाज के वृद्धों की।
तो क्या अंत समय में अभिशापित सा
जीवन जीना ही बस नियति हमारी है!
रचनाकाल : 20 जून 2021

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