अनुभवी और अनुभवहीन


जब अनुभवहीन था पहले मैं 
अक्सर दुस्साहस भरे काम कर जाया करता था
जानता नहीं था क्या होती है मौत
आज जब याद आती हैं घटनाएं 
कांप उठता हूं यह सोच कि अक्सर
मरने से मैंं बाल-बाल ही बस बच जाया करता था
अब समझदार हूं, जोखिम नहीं उठा पाता
जिंदगी सुरक्षित है पहले की तुलना में
दिन पहले के ही लेकिन अब भी मोहक लगते हैैं
डर जाने कैसा समा गया है भीतर
अनजानी राहों पर चलने की अब हिम्मत नहीं जुटा पाता।
अनुभवों ने मुझे किया बहुत समृद्ध
मगर छीना भी है कम नहीं
अगर जोड़ने-घटाने बैठूं तो
क्या पता कि किसका पलड़ा भारी हो!  
गिला तो कोई भी है नहीं जिंदगी से अब भी
हसरत होती है लेकिन मन में काश,
कि पहले जैसी निर्भयता फिर हासिल कर पाता
कुछ नहीं जानता था जब, तब मन जैसा था निर्दोष
जानता हूं जब सब कुछ आज
स्वयं को पहले जैसा फिर निर्दोष बना पाता!
रचनाकाल : 2 जून 2021

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक