जिंदादिली
दु:स्वप्न बन जाये जब जिंदगी
ऐसे जीवन का आखिर करे क्या कोई?
अगली बारी है किसकी समाने को आगोश में मौत के
भय के साये में बीतें अगर दिन यही सोचते-सोचते
मृत्यु से भी क्या बदतर नहीं होगी तब जिंदगी?
होने देना है लेकिन ये हर्गिज नहीं
चिर विदा हो गये जो, उन्हें याद कर
शोक में बैठने का समय ये नहीं
युद्ध जारी है घनघोर जो इन दिनों काल से
जीतने उसमें देना नहीं है किसी मूल्य पर मौत को
देनी आहुति पड़े चाहे कितने ही लोगों की पर
मुर्दनी छाने पाये न दुनिया में, जिंदा है जब तक यहां एक इंसान भी
जिंदगी को नहीं होने देना है शर्मिंदा दयनीय बन
आखिरी सांस तक रखनी कायम है हरएक इंसान को अपनी जिंदादिली।
रचनाकाल : 29 मई 2021
कहते है उम्मीद पर दुनिया कायम है आज के दौर में सबसे ज्यादा जरूरी जिंदादिली ही है सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मैडम
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