सोशल-अनसोशल


मैं नहीं यूज करता हूं फेसबुक, या फिर इंस्टाग्राम
कि जिस दुनियादारी के कोलाहल से
बचकर लिखना चाह रहा हूं कविता
मुझको वही शोरगुल नजर वहां भी आता है।
करते हैैं जब आग्रह मुझसे लोग
कि लाइक कर दूं उनकी पोस्ट
या कि सबस्क्राइब कर लूं चैनल
धर्मसंकट में तब मैं बहुत बड़े पड़ जाता हूं
रुचि जिसमें नहीं है मेरी या जो मुझको नहीं पसंद
उसी को लाइक या सबस्क्राइब करके
झूठा कैसे बन जाऊं मैं अपनी ही नजरों में!
सच तो यह है जो आती चीज पसंद मुझे
उसका भी मैं नहीं पीटता डंका
बस चुपके से मैसेज करके अपनी राय बता देता हूं।
दरअसल दिखावे के युग में
नफरत सी होती है मुझको विज्ञापन से
मैं नहीं चाहता कोई मेरा कर ले इस्तेमाल
किसी का करता आऊं नजर न मैं
विज्ञापन जाने-अनजाने में।
माध्यम प्रचार का नहीं किसी के बन पाने की
कीमत तो बेशक मुझे चुकानी पड़ती है
शुभचिंतक भी धीरे-धीरे दुष्चिंतक बनते जाते हैं 
सोशल मीडिया के बूम भरे इस युग में भी
अनसोशल मैं रह जाता हूं।
रचनाकाल : 19 मई 2021

Comments

  1. बहुत ही खुबसूरत लाईन हैं मामा जी,
    सादर प्रणाम 👏

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