महाभयावह रात
देखा था सपना भयावह
चल रही हैैं आंधियां घनघोर
लेकिन जागता तो देखता हूं
हर जगह छाई है शांति डरावनी
बादलों ने ढंक रखा आकाश सारा
देख पर उनको खुशी होती नहीं
भय और बढ़ जाता है भीतर का।
इन दिनों इतनी हकीकत है भयानक
चाहता हूं नींद आ जाये तो शायद
शांति मिल जाये जरा सी देर को
जागता हूं किंतु तो क्या देखता हूं
थरथराहट थम नहीं पाई अभी तक
याद कर दु:स्वप्न को।
कर नहीं पाता मगर तुलना
भयानक कौन है ज्यादा
हकीकत या कि सपना?
दिन वही हैैं, रात भी है वही
जो कुछ माह पहले थी
मगर इस बीच जाने क्या हुआ बदलाव
बदले लग रहे हैैं मायने हर चीज के
बस प्रार्थना करता हूं मन ही मन
कि जल्दी बीत जाये यह भयानक रात
हो जाये सवेरा, पूर्ववत हो जाय सबकुछ
छोड़ कर जो भी अचानक जा चुके हैैं
जागते ही वे सभी मिल जायें पहले की तरह!
रचनाकाल : 9 मई 2021
चल रही हैैं आंधियां घनघोर
लेकिन जागता तो देखता हूं
हर जगह छाई है शांति डरावनी
बादलों ने ढंक रखा आकाश सारा
देख पर उनको खुशी होती नहीं
भय और बढ़ जाता है भीतर का।
इन दिनों इतनी हकीकत है भयानक
चाहता हूं नींद आ जाये तो शायद
शांति मिल जाये जरा सी देर को
जागता हूं किंतु तो क्या देखता हूं
थरथराहट थम नहीं पाई अभी तक
याद कर दु:स्वप्न को।
कर नहीं पाता मगर तुलना
भयानक कौन है ज्यादा
हकीकत या कि सपना?
दिन वही हैैं, रात भी है वही
जो कुछ माह पहले थी
मगर इस बीच जाने क्या हुआ बदलाव
बदले लग रहे हैैं मायने हर चीज के
बस प्रार्थना करता हूं मन ही मन
कि जल्दी बीत जाये यह भयानक रात
हो जाये सवेरा, पूर्ववत हो जाय सबकुछ
छोड़ कर जो भी अचानक जा चुके हैैं
जागते ही वे सभी मिल जायें पहले की तरह!
रचनाकाल : 9 मई 2021
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