लड़ाई अंधकार से
घनघोर अंधकार मेंं
अनजाने जीव-जंतुओं की
कैसी ये दुनिया है?
कहां गये मनुष्य जो
उजालों में रहते थे
करते थे प्रार्थना
तमसो मा ज्योतिर्गमय
सत्ता ये कैसे बदल गई?
कहा यही जाता था हमेशा से
जीतता नहीं है कभी अंधकार
सह कर भी कष्ट लोग घनघोर
लड़ते थे पक्ष में सच्चाई के
टूटता नहीं था कभी
उनका विश्वास यह
कि जीत होगी सत्य की ही अंत में।
छंट नहीं रहा है क्यों अंधेरा फिर
लड़ रहे थे सत्य के जो पक्ष में कहां गये
जयकार हो रही जब अंधकार की
फिर सामने आता नहीं है कोई क्यों विरोध में?
प्रजाति क्या वो खत्म हो चुकी जिसे
उजाले की संतान कहा जाता था?
नहीं, नहीं, कदापि नहीं हो सकता सत्य यह
ढूंढ़ना ही होगा मुझे उनको
हो सकता है जो कहीं पड़े हों लहूलुहान
ताकतवर बेशक है अंधकार बेहद कहीं
कर न दिया हो इसने मरणासन्न सत्य को!
इसके पहले कि सहस्राब्दियों तक
एकछत्र कायम हो राज्य, अंधकार का
ढूंढ़ना ही होगा मुझे सत्य की संतानों को
लड़ना ही होगा उनके साथ मिलकर तमस से
हो न जाय युगों जितनी ताकि लम्बी रात यह।
रचनाकाल : 14 मई 2021
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