काल से होड़


बेशक भयानक है समय बेहद
शोक में गंवाना किंतु उचित नहीं
वक्त नहीं बैठ कर तटस्थ यह
विश्लेषण करने का
जितना ही भीषण कहर बरपेगा
जीना होगा उतनी जिंदाजिली से
जीतने न पाये खौफ मौत का
भीषण इस युद्ध में।
लड़नी पड़ती हैं सबको
अपने-अपने हिस्से की लड़ाइयां
नियति है हमारी अगर
लड़ना महामारी से तो यही सही
मरना तो सबको है एक दिन
जीते जी मरना पर उचित नहीं
लड़ें इतने सुंदर हम ढंग से
कि मरणांतक पीड़ा भी बन जाये आकर्षक
गोद में भी मौत की
भूलने न पायें जीवन मूल्यों को
काल को भी रश्क हो
कि पाला पड़ा था उसका
शानदार कैसे मनुष्यों से
ढुलक पड़ें उसकी भी आंखों से
आंसू की बूंद चंद।
रचनाकाल : 13 मई 2021

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक