मन की शक्ति
जब उम्र नई थी, अतुलित बल था भीतर
कुछ भी नहीं असम्भव था तब मेरी खातिर
चौबीसों घण्टे मैं घोर परिश्रम करता था
होती थी नहीं थकान, उल्लसित रहता था मन हरदम
खुद को भाग्यवान दुनिया में सबसे ज्यादा अनुभव करता था।
ढलते ही पर नई उम्र, अचानक शक्तिहीन हो गया
रह गया हक्का-बक्का बहुत दिनों तक
समझ ही पाया नहीं कि आखिर क्या से क्या हो गया!
निराशा भरे दिनों में उन्हीं, हुआ सहसा ही यह अहसास
शक्ति का स्रोत तन नहीं, मन है
मन में हो अदम्य विश्वास अगर तो
बाधा कोई रोक नहीं सकती है आगे बढ़ने से।
विश्वास यही है मन का जिसके बल पर गांधी
मरणासन्न अवस्था में भी उपवास पूर्ण करते इक्कीस दिनों का
श्रवणशक्ति के बिना बिथोवन रचते हैैं अप्रतिम धुन
छूती हैैं पैरों के बिना अरुणिमा शिखर हिमालय का
लगभग पूरा अपंग होकर भी जिजीविषा के बल पर ही
दशकों जीवित रहते स्टीफन हॉकिंग
हेलेन केलर प्रेरित करतीं पूरी दुनिया को
अनगिनत प्रेरणादायक लोग हैैं ऐसे
मन की ताकत के बल पर जिनने रच डाला है इतिहास
रोक पाई न अक्षमता तन की, जिनकी राहों को।
मैं भी भरकर विश्वास लबालब मन में
फिर से होता हूं उठ खड़ा
कि अब तक जीती जो आसान दौड़ थी, तन की
मन की ताकत के बल पर मुझको
पानी है अब मुश्किलों से भरी बाधा दौड़ में जीत।
रचनाकाल : 25 मई 2021
Comments
Post a Comment