विध्वंस और सृजन


त्रासदी है बहुत गहरी बेशक मगर
शोक करने का हर्गिज समय यह नहीं
जितनी रफ्तार से हो रहा है विध्वंस
उतनी ज्यादा ही सृजनात्मकता लायें हम
जिंदगी-मौत की इस लड़ाई में होने न पाये
विजय ताकि यमराज की।
मृत्यु आती अकेले कभी भी नहीं
शोक, व्याकुलता, बेचैनी, गहरी उदासी
अकर्मण्यता साथ में लाती है
जिंदगी के उजाले से डरती है वो
चाहती है कि फैले अंधेरा घना
तम में डूबा रहे सारा अस्तित्व ही
जिंदगी का न हो कोई नामो-निशां।
हम उजाले की संतान हैैं पर मनुज
पूर्वजों ने पराजित किया है सदा तम के अंधियारे को
हार मानेंगे हम भी नहीं, मौत जितनी भी विकराल हो
छीन ले कितने भी बंधुओं को मगर
फैलने देंगे हर्गिज न साम्राज्य अंधियारे का
जितनी तेजी से सब कुछ मिटायेगी वो
उतनी तेजी से जारी रखेंंगे सृजन
मिटने देंगे न धरती से अच्छाई को
हावी होने न देंगे भय को मृत्यु के
मर के भी राख से अपनी लेंगे जनम
खण्डहर पर बनायेंगे फिर-फिर भवन।
रचनाकाल : 28 अप्रैल  2021

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