प्रार्थना


त्रस्त होकर कोरोना महामारी से
सारी धरती के इंसानों की ओर से
दूर करने की खातिर विकट आपदा
कर रहा था मैं ईश्वर से जब प्रार्थना
मैंने देखा कि धरती के सब चर-अचर
हाथ जोड़े खुशी से खड़े थे वहां
कर रहे थे अदा अपनी कृतज्ञता
खत्म करने की खातिर विकट आपदा
मिल गई थी उन्हें मुक्ति इंसान के सदियों के त्रास से।
देख कर स्तब्ध था मैं निष्ठुर सत्य को
खुद को नायक समझते थे दुनिया का हम
किंतु कर्मों से अपने खलनायक बन बैठे सभी के लिये
इसलिये जब फंसे घोर संकट में तो
उल्लसित थी प्रकृति सारी, चेहरे पे सबके निखार आ गया।
मैं था शर्मिंदा कैसे करूं प्रार्थना
कष्ट हरने को ईश्वर से इंसानों का
हाथ जोड़े व्यथित बस यही कह सका
कष्ट जो भी दिये, उनको सहने की भी शक्ति देना हमें
महामारी की इस अग्नि में स्नान कर
मौका यदि फिर मिला, बच गये हम अगर
तब ये कोशिश करेंगे कि सचमुच के नायक बनें
त्रस्त हमसे न हो कोई भी चर-अचर
गोद में धरती मां की सब निर्भय रहें
मुक्ति हमसे न पाने की कोई करे प्रार्थना।
रचनाकाल : 23 अप्रैल 2021

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