महामारी के बाद
जिसको किस्से-कहानी में सुनते रहे
दादियों-नानियों से कि देखा उन्होंने है ऐसा समय
लोग कितने ही भूखों मरे थे पड़ा था भयावह अकाल
या महामारियां लील जाती थीं सारा का सारा ही गांव
आज हमारे भी हिस्से में आया है वैसा भयानक समय
दृश्य देखे नहीं जाते ऐसे विदारक हैैं चारों तरफ
हर कोई क्षत-विक्षत है सभी खो चुके हैैं
कोई ना कोई अपना प्रियजन-परिजन
जिंदगी भर नहीं घाव जो भर सकें
जिसको किस्से-कहानी में भी सुन के होंगे खड़े रोंगटे
ऐसा सीने में ही दर्द लेकर जियेंगे कई नागरिक।
क्रूर कितना भी हो पर समय तो कहीं कभी रुकता नहीं
खण्डहर से भी फूटेंगी फिर कोंपलें
फिर से गूंजेंगी दुनिया में किलकारियां
जिंदगी फिर से आबाद होगी आयेंगी नई पीढ़ियां
दादियां-नानियां फिर सुनायेंगी किस्से
भयावह महामारी कोरोना के
दर्द लेकिन क्या महसूस कर पायेंगे पूरी शिद्दत से वे
बाज आयेंगे पर्यावरण की तबाही से
धरती को समझेंगे सचमुच ही मां की तरह
या कि इतिहास ही खुद को दोहरायेगा फिर हमारी तरह?
रचनाकाल : 18 अप्रैल 2021
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