गरिमामय जीवन


दु:ख -कष्टों का हूं ऋणी
कि उनके बिना न जीवन होता रंग-बिरंगा
आता मुझको नहीं पसंद
अगर पर्वत-जंगल-घाटियों बिना
जीवन होता सीधा-सपाट मैदान
कि दु:ख-कष्टों से पैदा होता है
जीवन में रोमांच।
मगर मैं सहन नहीं कर पाता हूं
उस पीड़ा को जो लोग झेलते मजबूरी में
स्वेच्छा से दु:ख सहने में
आता है जो आनंद
भयानक पीड़ा उतनी ही होती है
मजबूरी में वही सहन दु:ख करने में।
इसलिये प्रार्थना करता हूं ईश्वर से
या तो सहनशक्ति दे लोगों को
स्वेच्छा से सबकुछ सहने की
या मुझको ही वह दे दे सारी
दुनिया के दु:ख कष्ट, क्योंकि
सह सकता हूं मैं सबकुछ लेकिन
सहन नहीं कर पाता हूं
पीड़ा से उपजी मर्मांतक चीखों को
गरिमा बनी रहे मानवता की
हो दीन-हीन कोई भी नहीं मनुष्य
यही बस कोशिश मेरी है।
रचनाकाल 2 अप्रैल 2021

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