अर्थ बदलते सुख-दु:ख


अक्सर मैंने महसूस किया है
सुख-दु:ख सारे सापेक्षिक होते हैैं
अस्तित्व नहीं है उनका खुद में
तुलना करने पर ही वे
कम ज्यादा होते हैैं।
जब कष्ट भयानक सहता था मैं
छोटे दु:ख तब सुख के जैसे लगते थे
आदी लेकिन जब होने लगा सुखों का तब
छोटे-छोटे सुख नीरस लगने लगे
सुनहरी स्मृतियां लगने लगीं दु:खों वाले दिन की।
इसलिये भागता नहीं सुखों के पीछे अब
करना होता है दूर किसी के कष्टों को
तो उससे भी ज्यादा दु:ख सहने लगता हूं
आराम उसे मिलता है मुझको संग पाकर
दु:ख में ही सुख महसूस उसे होने लगता है, मुझको भी
अद्भुत है यह कीमियागरी
जब सुख पाने की कोशिश करता था तब दु:ख ही मिलता था
अब जितना ज्यादा दु:ख-कष्टों को सहता हूं, सुख मिलता है।
रचनाकाल : 12 अप्रैल 2021

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