मन के घाव


मन के घाव भयानक होते हैैं
वे दिखते नहीं मगर रह रह कर उठती उनमें टीस
नींद दु:स्वप्नों से भर जाती है
खोया हो जिसने अपना प्रियजन-परिजन
जिसका मन हो जितना ही संवेदनशील
घाव उतना ही ज्यादा गहरा होता है
वरदान मिला है सिर्फ मनुष्यों को
जान सकते हैैं केवल वे ही भूत-भविष्य
मगर अभिशाप यही दुर्दिन में बन जाता है
भाग्यशाली साबित होते हैैं जीव मनुष्येतर
जीते हैैं जो बस वर्तमान में
कोई चिंता नहीं, नहीं उम्मीद कोई
बस सहज प्रवाह नदी के जैसा
सबकुछ चलता जाता है।
हासिल तो हमने बहुत किया
पर खोया भी कम नहीं
पाये जितने भी वरदान
मिले अभिशाप कम नहीं उससे
जाने कौन हमारे लिये कि क्या बेहतर है?
बस चरम क्षणों में दु:ख के लगता यही
कि ईश्वर ले ले अपने हाथों में ही बागडोर
सब चिंताओं से कर दे मुक्ति प्रदान
मनुष्येतर जीवों के जैसे ही
हम भी बस जीने लगें क्षणों में वर्तमान के!
रचनाकाल : 31मार्च 2021

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