सुख से दूरी

आते हैं बेशक सुखद जिंदगी में पड़ाव
रुक सकता ज्यादा देर नहीं पर वहां
जरूरत भर संचित कर शक्ति
निकल पड़ता हूं फिर से
कांटों भरी कठिन राहों पर।
कई बार हुआ है ऐसा
झोंका सुखद हवा का
लाया ऐसी नींद
देर तक सोता ही रह गया
बदन में छाई ऐसी जकड़न
मुश्किल लगने लगा बढ़ाना एक कदम भी।
तब से डरता हूं मैं सुखद पलों से
भरमाते हैं बहुत जल्द वे
कांटे मुझको सतत जागरुक रखते हैं
इसीलिये रस लेता उतना ही बस
जिंदा रहने को जो लगे जरूरी बेहद
दम टूट न जाये बीच राह में जिससे
उससे ज्यादा तनिक जुटाना भी सुख-सुविधा
मुझको भर देता अपराध बोध से
जान बूझ कर चुनता हूं मैं कठिन मार्ग
स्वेच्छा से सारे दुख कष्टों को सहता जाता हूं।
रचनाकाल : 1 मार्च 2021

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