प्रायश्चित


है पता मुझे मैं हारी बाजी खेल रहा हूं
नहीं जीत की है कोई उम्मीद, दूर इतना आया चलते-चलते
अब मंजिल तक तो पहुंच नहीं सकता हूं एक जनम में
उल्टी दिशा सैकड़ों सालों से थी चलने की
पर लौटा नहीं अभी भी यदि तो सर्वनाश जल्दी तय है।

मानना कठिन तो है बेहद गलती अपनी
समझे थे जिसको उन्नति वह थी राह तबाही की
पर आंख मूंद कर चलते जाना भी अब सम्भव नहीं
सामने आता ही जा रहा रूप विकराल प्रकृति का
नहीं किया यदि प्रायश्चित अब भी तो बचना मुश्किल है।

नुकसान हो चुका इतना भरपाई करने में लग जायेंगी सदियां
तब तक जीना होगा कठिन परिस्थितियों में
छोड़ कर सुख-सुविधाएं सहने होंगे कष्ट
तपस्या सदियों तक करनी होगी।

इसलिये बदलता हूं परिभाषा हासिल की
उम्मीद नहीं रखता हूं दुख के बदले में सुख मिलने की
नेकी ज्यादा से ज्यादा कर दरिया में डालता जाता हूं
दुख-कष्टों में तप कर अपने 
पुरखों की गलती का प्रायश्चित करता जाता हूं
रचनाकाल : 19 मार्च 2021

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