सहज प्रवाह

मैं नहीं मांगता ईश्वर से वरदान सुखी होने का
लय बस बनी रहे जीवन की, सुर में ही हों सारे काम
बेसुरा कभी भी होने पाऊं नहीं, यही बस इच्छा है
लयहीन तो नहीं कुछ भी इस दुनिया में
धरती, सूरज, चांद, सितारे सब चलते हैं अपनी लय में
जीव मनुष्येतर भी सभी समझते ईश्वर के संकेतों को
बस मानव ही हम भटक गये शायद पथ से
गढ़ तो ली भाषा नई, बना ली दुनिया अपनी कृत्रिम
भूलते चले गए पर प्रकृतिजन्य अहसासों को।
संगीत हमें ले जाता है उस दुनिया में
सब कुछ है सुर में जहां नहीं बेसुरा कोई
सुख दुख से परे असीम जहां मिलता मन को आनंद
कि दुनिया रंगमंच है सभी भूमिका अदा कर रहे अपनी
इस अनुपम नाटक में खलल न डालूं अपनी कर्कशता से
बाधित होने पाये नहीं नियति का सहज चक्र
सब कुछ हो स्वाभाविक बहती दरिया जैसा
उत्सव जन्म की तरह जहां मनाएं सभी मृत्यु का भी
कोई आघात सहनसीमा के बाहर न हो जहां
स्वाभाविक ऐसी दुनिया में जी सकूं यही बस इच्छा है।
रचनाकाल : 26 फरवरी 2021

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक