लुटने का आनंद
अद्भुत है आनंद स्वयं लुट जाने में
मैं डरता था बचपन में
यही सिखाया मुझे गया था दुनिया बहुत लुटेरी है
चौकन्नापन लेकिन हरदम का मुझको खाये जाता था
सब पर शक करना, विश्वास नहीं कर पाना
मुझको शर्मिंदा कर देता था मन ही मन में
जब बड़ा हुआ तो देखा छोड़ मनुष्यों को
दुनिया तो सारी दाता है!
पशु-पक्षी, पौधे-पेड़ सभी लेते हैैं जितना उससे ज्यादा देते हैैं
हम मानव ही बस दोहन करते धरती का!
चौकन्नापन तब से छोड़ दिया, मन के द्वारों को खोल दिया
जो जितना चाहे लूटे, मुझको खुशी वही मिलती है
पाते पेड़ लदे फल, जो पत्थर के बदले में फल देते हैं
अद्भुत है यह लुटता हूं मैं जितना ही
उससे ज्यादा मुझको देती है आनंद प्रकृति
लुट कर भी मैं धनवान दिनोंदिन होता जाता हूं
घनघोर मगर उससे भी ज्यादा अचरज की है बात
लूटता जो मुझको वह खुद भी लुट जाता है
छोड़ देता है चौकन्नापन वह करने लगता है विश्वास
मजा फिर उसको भी लुटने में आता है
देखकर यह सब मुझको मिलता है इतना ज्यादा आनंद
कि ज्यादा से ज्यादा मैं कोशिश करता लुटने की
विश्वास सिखाता हूं करना
सब लोगों को समृद्ध बनाता जाता हूं।
रचनाकाल : 27 फरवरी 2021
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